"बिहार इंजीनियरिंग कॉलेजों के नॉन-एकेडमिक इवेंट्स – फंड तो IIT/NIT लेवल का, पर मज़ा आधा-अधूरा"**
चलिए शुरू करते हैं एक किस्से से**
ज़रा सोचिए…
आप बिहार के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ रहे हैं। साल का सबसे बड़ा फ़ंक्शन आने वाला है – *एनुअल फ़ंक्शन*। क्लास के कोने में बैठा राहुल अपनी गिटार के तार चेक कर रहा है, सीमा कविता की पंक्तियाँ याद कर रही है, और खेल मैदान में रोहित क्रिकेट की प्रैक्टिस कर रहा है।
और तभी किसी सीनियर के मुँह से निकलता है –
*"भाई, सुना है इस बार फंडिंग इतनी आई है कि IIT वाला लेवल सेटअप होगा!"*
आपके कान खड़े हो जाते हैं। पर फिर असली दिन आता है… और बस स्टेज पर दो स्पीकर, टेंट में गर्मी, और पीछे से माइक की खटपट।
आपके दिमाग में पहला सवाल – *"फंड गया कहाँ?"*
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**बिहार इंजीनियरिंग कॉलेजों के नॉन-एकेडमिक इवेंट्स – क्या-क्या होते हैं?**
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**1. एनुअल फ़ंक्शन – साल का मेगा शो**
हर साल कॉलेज का सबसे बड़ा जश्न – *एनुअल फ़ंक्शन*।
इसमें तीन बड़े हिस्से होते हैं:
* **कल्चरल इवेंट्स** – डांस, सिंगिंग, ड्रामा, फैशन शो।
* **स्पोर्ट्स इवेंट्स** – क्रिकेट, वॉलीबॉल, एथलेटिक्स।
* **लिटरेरी इवेंट्स** – वाद-विवाद, कविता-पाठ, क्विज़।
DST (डिपार्टमेंट ऑफ़ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड टेक्निकल एजुकेशन) से इस फ़ंक्शन के लिए अच्छा-ख़ासा बजट आता है। अगर सही इस्तेमाल हो, तो स्टेज, साउंड, लाइटिंग और मेहमान – सब कुछ *IIT फेस्ट* जैसा लग सकता है।
लेकिन… अक्सर कहानी वैसी नहीं होती।
**2. ज़ोनल स्पोर्ट्स, कल्चरल और लिटरेरी एक्टिविटीज़
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ये इवेंट्स साल में एक बार होते हैं। एक ज़ोन के सारे कॉलेज इसमें हिस्सा लेते हैं, और एक कॉलेज इसका होस्ट होता है।
* क्रिकेट मैचों में जोश चरम पर।
* कल्चरल नाइट में हर कॉलेज का अपना बेस्ट परफॉर्मर।
* डिबेट में दिमाग़ी टक्कर।
इसके लिए भी बजट अलग से आता है।
लेकिन, कई छात्रों का कहना है – *"सर, इस फंड का इस्तेमाल अगर ठीक से हो, तो हम बाहर के कॉलेजों को टक्कर दे सकते हैं।"
**3. बाकी छोटे-छोटे इवेंट्स
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साल भर में इंटर-डिपार्टमेंट क्रिकेट, टेक-फेयर, वर्कशॉप्स और आर्ट एक्ज़ीबिशन भी होते हैं।
इनमें ज़्यादा फंड नहीं आता, लेकिन अगर होस्टिंग और मैनेजमेंट सही हो, तो ये भी छात्रों के लिए यादगार बन सकते हैं।
**समस्या कहाँ है?
**1. फंडिंग का इस्तेमाल**
छात्रों के अनुसार, समस्या का पहला कारण – *फंड का सही उपयोग न होना*।
अगर DST से 5–10 लाख रुपये आते हैं, तो उम्मीद होती है कि:
* अच्छी क्वालिटी का स्टेज और साउंड सिस्टम हो।
* बाहर से अच्छे परफॉर्मर बुलाए जाएँ।
* खिलाड़ियों को अच्छे किट्स और सुविधाएँ मिलें।
लेकिन कई बार पैसा गलत जगह या कम प्रभावी तरीक़े से ख़र्च हो जाता है।
**2. पारदर्शिता की कमी
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ज़्यादातर छात्रों को पता ही नहीं होता कि:
* फंड कितना आया?
* कहाँ-कहाँ खर्च हुआ?
* किससे सप्लाई ली गई?
ये जानकारी अगर *नोटिस बोर्ड* या *वेबसाइट* पर डाल दी जाए, तो आधी गलतफ़हमियाँ दूर हो जाएँ।
**3. इवेंट प्लानिंग में प्रोफेशनल अप्रोच की कमी
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IIT/NIT में इवेंट्स की तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती है।
यहाँ कई बार:
* तारीख़ आख़िरी महीने तय होती है।
* रिहर्सल के लिए समय नहीं मिलता।
* लास्ट मोमेंट में मैनेजमेंट गड़बड़ा जाता है।
**छात्रों के अनुभव – कुछ किस्से
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एक छात्र ने हँसते हुए कहा –
*"भाई, इस बार क्रिकेट के मैच में गेंद इतनी हल्की थी कि तेज़ हवा में ही उड़ जा रही थी।"
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दूसरे ने कहा –
*"कल्चरल नाइट में साउंड इतना धीमा था कि पहले दो पंक्तियों के बाद बैठा आदमी ही सुन पा रहा था।"
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ये मज़ाकिया लग सकता है, लेकिन असल में ये मैनेजमेंट और फंडिंग के सही इस्तेमाल की कमी दिखाता है।
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## **अगर सुधार करना है तो क्या करना होगा?
**1. फंडिंग में पारदर्शिता**
* हर साल फंड की डिटेल वेबसाइट पर पब्लिश हो।
* छात्रों की एक *फंड ऑडिट कमिटी* बनाई जाए।
**2. प्रोफेशनल इवेंट मैनेजमेंट**
* तैयारी 3–4 महीने पहले शुरू हो।
* लोकल आर्टिस्ट्स और प्रोफेशनल टीम को जोड़ा जाए।
**3. छात्रों की भागीदारी बढ़ाना**
* प्लानिंग में छात्रों को शामिल करें।
* ओपन फीडबैक सिस्टम हो।
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**FAQ – अक्सर पूछे जाने वाले सवाल**
**Q1: क्या बिहार के इंजीनियरिंग कॉलेजों में नॉन-एकेडमिक इवेंट्स के लिए सच में इतना बड़ा फंड आता है?**
हाँ, DST से आने वाला फंड इतना होता है कि अगर सही इस्तेमाल हो, तो IIT/NIT स्तर का आयोजन किया जा सकता है।
**Q2: क्या इन इवेंट्स का असर छात्रों के अकादमिक प्रदर्शन पर पड़ता है?
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हाँ, अच्छे इवेंट्स से टीमवर्क, लीडरशिप और मोटिवेशन बढ़ता है, जिससे पढ़ाई पर भी सकारात्मक असर पड़ता है।
**Q3: छात्रों को फंडिंग की जानकारी क्यों नहीं दी जाती?
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शायद पारदर्शिता की कमी या प्रशासनिक ढीलापन इसकी वजह है।
**निष्कर्ष – बात सिर्फ़ फंड की नहीं, नीयत की भी है**
बिहार के इंजीनियरिंग कॉलेजों में टैलेंट की कोई कमी नहीं।
जरूरत है तो बस सही मैनेजमेंट, पारदर्शिता, और छात्रों को केंद्र में रखकर फैसले लेने की।
अगर फंड का इस्तेमाल सही तरीके से हो, तो कल्चरल नाइट में वो जादू होगा, स्पोर्ट्स में वो जोश होगा, और लिटरेरी इवेंट्स में वो धार होगी, जिसे देख कोई भी कह उठे – *"ये है बिहार का असली टैलेंट!"*
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**💬 आपका क्या अनुभव है?**
अगर आप भी किसी बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ चुके हैं या पढ़ रहे हैं, तो नीचे कमेंट में अपना किस्सा ज़रूर शेयर करें।
शायद अगली बार आपका अनुभव किसी बदलाव की वजह बन जाए।