बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज: प्रगति, समस्याएँ और सच्चाई का खुलासा

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### बिहार इंजीनियरिंग: कहानी बदल रही है… पर पूरी नहीं! दोस्तों, अगर आप 10–15 साल पहले के बिहार इंजीनियरिंग कॉलेजों की हालत जानते हैं, तो आपको याद होगा — वो दौर जब लैब में कंप्यूटर चालू करने के लिए पहले पंखा चलाना पड़ता था, ताकि CPU गर्मी में बेहोश न हो जाए! लेकिन हाँ, मानना पड़ेगा, अब तस्वीर काफ़ी बदली है। आज बिहार के इंजीनियरिंग कॉलेज न केवल संख्या में बढ़े हैं, बल्कि कई जगहों पर इंफ्रास्ट्रक्चर और पढ़ाई का स्तर भी पहले से बेहतर हुआ है। BTech, MTech, Diploma—हर स्तर के कोर्स अब यहाँ मिल जाते हैं। कई कॉलेजों ने इंडस्ट्री टाई-अप भी शुरू किए हैं। लेकिन… (हाँ, यह “लेकिन” बड़ा भारी है) — बाहर वालों को जो चमक-दमक दिखती है, उसके पीछे कई ऐसे सच भी हैं, जो शायद अख़बारों की हेडलाइन नहीं बनते। --- ## **समस्या नंबर 1: सीटें बढ़ीं, लेकिन क्लासरूम की क्षमता वही पुरानी** बात ऐसे है जैसे आपने दावत में 200 लोगों को बुला लिया, लेकिन खाने की टेबल सिर्फ 50 लोगों की हो। सीटें बढ़ाना अच्छी बात है, लेकिन क्लासरूम की साइज वही रह गई। कई कॉलेजों में बच्चे literally खिड़की पर बैठकर पढ़ते हैं, या फिर पीछे इतने दूर कि बोर्ड पर लिखी चीज़ माइक्रोस्कोप से देखनी पड़े। ये समस्या सिर्फ नई बैच के साथ नहीं है—पुराने छात्र भी इसी अव्यवस्था में पढ़ रहे हैं। --- ## **समस्या नंबर 2: स्मार्ट क्लासरूम — नाम बड़े, दर्शन छोटे** कागज़ों में लिखा है, “स्मार्ट क्लासरूम उपलब्ध”। हकीकत? प्रोजेक्टर चालू करने से पहले पंद्रह मिनट का योगा करो, तब जाकर मशीन चालू हो। कई जगहों पर ये स्मार्ट क्लासरूम बस फोटो खिंचवाने और NAAC/NBA inspection के समय काम आते हैं। बाकी समय बच्चे और टीचर दोनों पुराने तरीके से ब्लैकबोर्ड-चॉक के भरोसे पढ़ाई करते हैं। --- ## **समस्या नंबर 3: लैब में टेक्नीशियन की कमी** लैब क्लास का मतलब होता है — हाथों से सीखना। लेकिन जब लैब में 60 स्टूडेंट और सिर्फ 1 टेक्नीशियन हो, तो वो कैसे सबको गाइड करेगा? अक्सर बच्चे खुद-ही-खुद प्रयोग कर लेते हैं, और फिर लैब रिकॉर्ड में “सही” रिजल्ट लिखकर पास हो जाते हैं। असल स्किल? वो अधूरी रह जाती है। यह ऐसे है जैसे तैरना सीखने से पहले ही आपको तैराकी का सर्टिफिकेट दे दिया जाए। --- ## **समस्या नंबर 4: नए कोर्स — संसाधन पुराने** पिछले कुछ सालों में कई कॉलेजों ने Artificial Intelligence, Data Science, Renewable Energy जैसे मॉडर्न कोर्स शुरू किए हैं। सुनने में शानदार लगता है। लेकिन जब पढ़ाई शुरू होती है, तो मालूम चलता है कि न तो सही लैब है, न अपडेटेड सॉफ़्टवेयर, और न ही प्रशिक्षित फैकल्टी। कोर्स सिर्फ सिलेबस में है, असल में बस किताब के पन्नों तक सीमित। --- ## **समस्या नंबर 5: एक्स्ट्रा करिकुलर और स्किल डेवेलपमेंट की कमी** आज के ज़माने में सिर्फ डिग्री काफी नहीं। बड़ी कंपनियाँ पूछती हैं — “आपने कॉलेज के दौरान क्या-क्या extra skills सीखी?” लेकिन बिहार के कई इंजीनियरिंग कॉलेजों में hackathons, coding competitions, robotics clubs, या specialised workshops का अभाव है। बच्चों के पास exposure ही नहीं है, जिससे उनका resume पतला रह जाता है, और कैंपस प्लेसमेंट में नुकसान होता है। --- ## **तो समाधान क्या है?** * **क्लासरूम विस्तार** – सीटों के हिसाब से इन्फ्रास्ट्रक्चर अपग्रेड * **स्मार्ट क्लासरूम का असली उपयोग** – सिर्फ कागज़ी नहीं, रोज़मर्रा में इस्तेमाल * **टेक्नीशियन की भर्ती** – ताकि लैब क्लास में बच्चों को सही गाइडेंस मिले * **नए कोर्स के साथ संसाधन** – फैकल्टी ट्रेनिंग, अपडेटेड सॉफ्टवेयर, और इंडस्ट्री एक्सपोज़र * **एक्स्ट्रा करिकुलर का बढ़ावा** – clubs, competitions, और workshops ज़रूरी --- ## **FAQ – अक्सर पूछे जाने वाले सवाल** **Q1: क्या बिहार के इंजीनियरिंग कॉलेजों की पढ़ाई पहले से बेहतर हुई है?** हाँ, पहले की तुलना में सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी कई क्षेत्रों में बदलाव की जरूरत है। **Q2: सबसे बड़ी समस्या क्या है?** इन्फ्रास्ट्रक्चर और स्किल-बेस्ड लर्निंग की कमी सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं। **Q3: क्या बिहार से अच्छे इंजीनियर्स निकलते हैं?** बिलकुल, लेकिन यह ज्यादातर छात्रों के व्यक्तिगत प्रयास और आत्म-सीख पर निर्भर करता है। --- ## **अंत में…** बिहार के इंजीनियरिंग कॉलेज एक ऐसी ट्रेन की तरह हैं जो सही ट्रैक पर चल पड़ी है, लेकिन उसकी स्पीड अभी धीमी है। अगर ऊपर बताई समस्याएँ हल हो जाएँ, तो यकीन मानिए — बिहार देश में इंजीनियरिंग शिक्षा का बड़ा केंद्र बन सकता है। अब सवाल आपसे — **क्या आपने भी बिहार के किसी इंजीनियरिंग कॉलेज का अनुभव लिया है?** अपनी राय कमेंट में ज़रूर शेयर करें। ---

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